Thursday, August 13, 2015

A gem from Sahir....


I have always wondered why old film songs are more dearer than recent ones.  The answer came when reading lyrics written by Sahir Ludhiyanwi… They are good poetry first, film songs later.

Here's an expressive non-film ghazal from Sahir…

न मिलता गम तो बरबादी के अफसाने कहां जाते
दुनिया में सिर्फ बहार होती तो वीराने कहां जाते
अच्छा हुआ अपनोंमें कोई गैर निकला
अगर होते सभी अपने तो बेगाने कहां जाते
दुआएं दो उनको जिन्होनें खुद मिटकर मोहब्बत निभा दी
न जलती शमा मेहफील में तो परवाने कहां जाते
जिन्होनें गम की दौलत दी, बडा एहसान फरमाया

जमाने भर के आगे हाथ फैलाने कहां जाते

No comments: